प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कतई बर्दास्त करने योग्य नहीं – डॉ मोहन तिवारी

प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कतई बर्दास्त करने योग्य नहीं - डॉ मोहन तिवारी

Garun News-कृष्णा यादव तमकुही राज/ कुशीनगर। प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कतई बर्दास्त करने योग्य नहीं है जिसका पुरजोर विरोध देश के सभी पत्रकारों को एक शुरु में करना चाहिए जब ही जाकर प्रेस की स्वतंत्रता बची रहेगी। इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया फरीदाबाद के अध्यक्ष डॉ मोहन तिवारी ने कहा की पत्रकारों के साथ मारपीट करना उन्हें धमकी देना या जान से मार देने का सिलसिला छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में भी आम बात हो गई है। उन्होंने कहा कि अभी कुछ दिन पहले ही मुकेश चंद्रकार की निर्मम हत्था की गई थी जिनकी यादें देशभर के पत्रकारों के दिलो दिमाग से हटी भी नहीं है जिन्होंने भ्रष्टाचार को उजागर किया जिसके लिए उन्हें सेप्टिक टैंक में चुनवा दिया गया।

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डॉ मोहन तिवारी ने कहा कि वही एक और मामला सामने आया है जहां पर पत्रकारों को न्याय के लिए मुख्यमंत्री आवास का घेराव करना पड़ा है। वरिष्ठ पत्रकार मोहन तिवारी ने कहा कि बीते सोनवार को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक बड़े सरकारी अस्पताल मेकाहारा में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार के साथ बदसलूकी का मामला सामने आया है। जिसके बाद पत्रकारों ने मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया फिर क्या था पत्रकारों को मिली जान से मारने के धमकी के बाद राजधानी के तमाम पत्रकार एकजुट हुए जिसके बाद इस घटना को गम्भीरता से लेने के बाद सभी पत्रकार तत्काल पुलिस और जिला प्रशासन से सख्त कार्यवाही की मांग की। उनकी मांग पर तुरंत कार्यवाही नहीं की गई तब सभी पत्रकारों ने अस्पताल परिसर में ही धरने पर बैठने का निर्णय किया। धरने पर बैठने के बावजूद उन्हें अनदेखा किया जा रहा था फिर पत्रकारों ने मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया और मुख्यमंत्री आवास के सामने प्रदर्शन किया। पत्रकारों की यह एकता और प्रदर्शन ने जिला और पुलिस प्रशासन के साथ-साथ राज्य सरकार का भी ध्यान आकर्षित किया जिसके बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने हस्तक्षेप किया और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया। आश्वासन के बाद प्रदर्शन खत्म किया गया।
वरिष्ट पत्रकार डॉ मोहन तिवारी ने कहा कि पत्रकार एक चाकू बाजी की घटना को लेकर खबर की जानकारी के लिए मेकाहारा अस्पताल पहुंचे थे। वहां प्राइवेट बाउंसर ने उन्हें अंदर जाने से मना किया। इसका विरोध करने पर गाली-गलौज करते हुए धक्का मुक्की की गई। इसकी सूचना मिलते ही दूसरे पत्रकार भी पहुंच गए। इसके बाद बाउंसर जतिन ने अपने बाकी दोस्तों को बुला लिया और पत्रकारों पर हमला कर दिया। इससे कई पत्रकारों को गंभीर चोटें भी आई। इस दौरान बाउंसर वसीम अकरम ने एक पत्रकार पर पिस्तौल तानते हुए जान से मारने की धमकी दी। यह घटना सीधे तौर पर प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला थी जो कतई बर्दाश्त करने योग्य नहीं थी जिसने पूरे पत्रकार समुदाय को एकजुट कर दिया। यह सारा दृश्य अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो रहा था जो सबसे बड़ा सबूत बन गया। जिसके बाद पत्रकारों ने मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया जिसके बाद कार्यवाही किया गया। आरोपियों को राजधानी में सर मुंडवाकर घुमाया गया।

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श्री तिवारी ने कहा कि पत्रकारों के प्रदर्शन के बाद आरोपी बाउंसर वसीम, जतिन गंजीर, सूरज राजपूत, मोहन राव गौरी के खिलाफ मौदहापारा पुलिस ने धारा 296, के तहत सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकत करना या अश्लील शब्द बोलना, धारा 115(2) के तहत जानबूझकर चोट पहुंचाना, धारा 351(2) के तहत जान से मारने की धमकी, धारा 126(2) के तहत अवैध रूप से रोका जाना, और 3(5) के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध अपराध तथा बीएनएस और 25, के तहत अवैध रूप से हथियार रखना या चलना, 27 के तहत गोलाबारूद का उपयोग करना आर्स एक्ट का अपराध दर्ज किया। वसीम से पिस्तौल और 22 जिंदा कारतूस जब्त किए गए। इतना ही नहीं सोमवार को पुलिस ने चारों आरोपियों को सिर मुंडवाकर रायपुर शरह को पैदल घुमाते हुए जेल भेजा गया।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ मोहन तिवारी ने कहा कि पत्रकारों की यह एकता सभी को सीख देती है कि देश में गलत का एक साथ खड़े होकर विरोध करने पर ही न्याय मिल सकता है लेकिन कुछ सवाल भी जरुर उठते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है जिसे लगातार किसी न किसी बहाने से दबाने की कोशिश देखी जा सकती है। यदि पत्रकारों को सच उजागर करने की कीमत जान से चुकानी पड़े तो यह व्यवस्था पर गहरा प्रश्न है। डॉ मोहन तिवारी ने कहा कि स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता पत्रकारों को मुख्यमंत्री के आवास तक ले गई जो दर्शाता है कि न्याय की पहली सीढ़ी विफल हो चुकी है। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या सरकार सिर्फ आश्वासन देकर जिम्मेदारी से बच सकती है? यह समय है कि सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे और गुंडागर्दी करने वालों पर कठोर कार्रवाई हो वरना जनता की आवाज को दबाने का यह सिलसिला और खतरनाक मोड़ ले सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मुकेश चंद्रकार जिन्हें सच बोलने पर अपनी जान गवानी पड़ी। देश में ऐसे कई पत्रकार हैं जो जमीनी हकीकत दिखाना चाहते हैं या दिखाते हैं उन्हें या तो मार दिया जाता है या तो देशद्रोही के नाम से जेल भेज दिया जाता है लेकिन इन सब पर भारी पड़ता है पत्रकारों की एकता।

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