जब शिक्षा बोझ बने, तो समाज की हार होती है -आयुष सिंह

जब शिक्षा बोझ बने, तो समाज की हार होती है -आयुष सिंह

Garun News-कृष्णा यादव तमकुही राज/ कुशीनगर

समाज के समुचित विकास के लिए समाज के लोगों का शिक्षित होना बेहद ही आवश्यक है ।  लेकिन एक शिक्षित नागरिक होने का मापदंड क्या है ?  क्या किसी संस्थान में दाखिला लेकर डिग्री प्राप्त कर लेने से कोई व्यक्ति शिक्षित कहलाता है  या किसी प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण कर सरकारी नौकरी प्राप्त कर लेने से कोई व्यक्ति शिक्षित कहलाता है ?
समाज के अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग मापदंड तय किए हैं, परंतु क्या इससे हमारे समाज का विकास संभव है ?
अभिभावक अपने बच्चों को बिना परिणाम की चिंता किए डॉक्टर – इंजीनियर बनने के लंबी रेस में दौड़ा रहे हैं । 12 वी के बाद ये बच्चे भी कोटा या किसी बड़े शहर के बंद कोठरी में खुद को कैद कर बेहतर करने का प्रयत्न करते है लेकिन क्या हो अगर परिमाण बेहतर न मिले ?
कोटा में न जाने कितने बच्चों ने शिक्षा के बोझ तले आत्महत्या के रास्ते का चुनाव किया । ऐसे में अभिभावकों को ये बात समझनी चाहिए कि अपने बच्चों पे किसी भी प्रकार का नकारात्मक दबाव उनके जिंदगी को गलत दिशा की ओर मोड सकता है।

आज के समय में शिक्षा का अधिकतर जोर प्रतिस्पर्धा पर है, जिससे बच्चे एक अनजाने दबाव में जीने लगते हैं। माता-पिता और समाज की उम्मीदों के बोझ तले वे अपने असली रुचि और क्षमताओं को पहचान ही नहीं पाते। कोटा जैसी जगहों पर आत्महत्या के बढ़ते मामले इसी मानसिक दबाव का उदाहरण हैं। यह स्पष्ट करता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल अच्छे अंक प्राप्त करना या एक निश्चित करियर बनाना नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यक्ति को ऐसा ज्ञान और कौशल देना चाहिए जिससे वह किसी भी परिस्थिति में आत्मनिर्भर रह सके।

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एक सच्चे शिक्षित व्यक्ति की पहचान उसकी डिग्री से नहीं, बल्कि उसके विचारों और कर्मों से होती है। शिक्षा उसे इतना सक्षम बनाती है कि वह सही-गलत में अंतर कर सके, तार्किक और विवेकपूर्ण निर्णय ले सके और समाज के कल्याण में योगदान दे सके। एक शिक्षित व्यक्ति अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों को भी समझता है और राष्ट्र की प्रगति में अपनी भूमिका निभाने के लिए तत्पर रहता है।

इसलिए, शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जित करना या परीक्षा में अच्छे अंक लाना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह आत्मनिर्भरता, नैतिकता और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने का माध्यम होना चाहिए। जब शिक्षा सही दिशा में होगी, तो समाज और राष्ट्र का विकास भी समुचित रूप से होगा, और हर नागरिक अपने स्तर पर देश को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकेगा।
उक्त बाते आयुष सिंह पत्रकारिता विद्यार्थी,माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार, विश्वविद्यालय,भोपाल ने एक प्रेस वार्ता के दौरान कही।

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